एंटीबायोटिक प्रतिरोध - एक परिचय 

एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग वास्तव में दुनिया-भर में एक बढ़ती चिंता का विषय है। एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक एवं अनुचित उपयोग के कारण एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया का उद्भव और प्रसार हुआ है, जिन्हें "सुपरबग्स" भी कहा जाता है।


विभिन्न वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों के अनुसार Antimicrobial Resistance (AMR) यानि रोगाणुरोधी प्रतिरोध का सार्वजनिक स्वास्थ्य और रोगी की देखभाल पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। Antimicrobial Resistance (AMR) का वैश्विक प्रभाव इतना व्यापक हो चुका है कि 2019 कि एक रिपोर्ट के अनुसार, एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीवाणु संक्रमण के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में 12 लाख से अधिक लोगों (संभावित) की मृत्यु हुई। "द लैंसेट" में प्रकाशित 204 देशों और क्षेत्रों के विश्लेषण से पता चलता है कि AMR अब दुनिया भर में मौत का एक प्रमुख कारण है, जो HIV/AIDS या मलेरिया से भी अधिक है।


क्यों और कैसे होता है एंटीबायोटिक प्रतिरोध

एंटीबायोटिक प्रतिरोध (Antibiotic Resistance) एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसमें बैक्टीरिया या अन्य माइक्रोबियल जीवाणु विभिन्न एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं। इसका यह मतलब होता है कि जब हम एंटीबायोटिक्स का अनुचित उपयोग करते हैं, तो बैक्टीरिया उनसे आदिकारित हो जाते हैं और उन्हें नष्ट करने के लिए अपनी संरचना में विभिन्न तरीके से बदलाव या विशेष जीनों में म्यूटेशन करते हैं और दवा के प्रभाव को मिटा देते हैं। इस तरह अब इन नए विकसित बैक्टीरिया पर इन दवाओं का कोई प्रभाव नहीं होता और इन्हीं को हम Superbugs भी कहते हैं।


एंटीबायोटिक प्रतिरोध मुख्यतः दो कारणों से होता है - बैक्टीरिया कि यह संरचना का बदलाव आमतौर पर अनुचित एंटीबायोटिक्स का उपयोग और एंटीबायोटिक्स की अत्यधिकता के कारण होता है किन्तु कभी-कभी यह जन्मजात भी हो सकता है। यह जन्म से उन्हीं लोगों में देखा जाता है जिनके माता-पिता ने उनके जन्म के पहले अथवा गर्भावस्था में अनुचित एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया हो। यहाँ यह समझना महत्वपूर्ण है कि एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब गंभीर जीवाणु संक्रमण के लिए उचित चिकित्सा मार्गदर्शन में निर्धारित कोर्स पूरे निर्देशानुसार पालन किया जाये।


एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग को रोकने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें उचित एंटीबायोटिक उपयोग के बारे में सार्वजनिक जागरूकता में सुधार करना, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता शिक्षा को बढ़ाना और निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करना, प्रतिरोध पैटर्न की निगरानी के लिए मजबूत निगरानी प्रणाली लागू करना, संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण उपायों को बढ़ावा देना तथा होमियोपैथी, आयुर्वेद जैसे उपचार के तरीकों को बढ़ावा देना शामिल है।


क्यों बचना चाहिए एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग से 

यहां कुछ प्रमुख कारण बताए गए हैं कि क्यों हमें अनावश्यक एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग करने से बचना चाहिए:

एंटीबायोटिक प्रतिरोध का विकास: एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विकास में योगदान देता है। जब एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग किया जाता है, तो बैक्टीरिया अनुकूलित हो सकते हैं और दवाओं के प्रति प्रतिरोधी बन जाते हैं, जिससे वे अप्रभावी हो जाती हैं। यह एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है क्योंकि यह जीवाणु संक्रमण के इलाज में एंटीबायोटिक दवाओं की प्रभावशीलता को सीमित करता है और अधिक गंभीर बीमारियों के उपचार की विफलताओं, बीमारी की लंबी अवधि, उपचार लागत में वृद्धि और उच्च मृत्युदर का कारण बनता  है।

सीमित उपचार विकल्प: एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग का मतलब है कि जब लोगों को जीवाणु संक्रमण के लिए वास्तव में इसकी आवश्यकता होती है, तो दवाएं कम प्रभावी या पूरी तरह से अप्रभावी हो सकती हैं। तो इस तरह यह उपलब्ध उपचार विकल्पों को कम कर देता है।

माइक्रोबायोम का विघटन: हमारा शरीर विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीवों का घर है, जिनमें लाभकारी बैक्टीरिया भी शामिल हैं जो हमारे स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं। एंटीबायोटिक्स न केवल संक्रमण पैदा करने वाले हानिकारक बैक्टीरिया को निशाना बनाते हैं बल्कि हमारे शरीर में लाभकारी बैक्टीरिया को भी प्रभावित करते हैं। खासतौर से ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स शरीर में हानिकारक और लाभकारी दोनों बैक्टीरिया को मारते हैं। इस तरह एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग माइक्रोबायोम के संतुलन को बाधित करता है, जिससे विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जैसे पाचन समस्याएं, कमजोर प्रतिरक्षा और संक्रमण के प्रति संवेदनशीलता बढ़ सकती है।

प्रतिकूल प्रभाव: एंटीबायोटिक्स प्रतिकूल प्रभावों से रहित नहीं हैं, उनके हल्के से लेकर गंभीर तक दुष्प्रभाव हो सकते हैं। एंटीबायोटिक्स का अनुचित उपयोग एलर्जी, दवा पारस्परिक क्रिया, त्वचा पर चकत्ते, शरीर के प्राकृतिक माइक्रोबियल संतुलन में व्यवधान, जिससे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं अवसरवादी संक्रमण जैसी जटिलताओ का कारण बनता है। यह तो सर्वविदित है कि एंटीबायोटिक दवाओं और non-steroidal anti-inflammatory drugs (NSAIDs) जैसे एस्पिरिन, आइबूप्रोफेन तथा अन्य पेन-किलर्स का अंधाधुंध उपयोग क्रोनिक किडनी डिसीज़ (CKD) या फिर अंतिम चरण के गुर्दे की बीमारी (ESRD - end stage renal disease) का प्रमुख कारक है।

स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि: एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमणों के लिए अधिक जटिल और महंगे उपचार विकल्पों की आवश्यकता होती है, जिसमें महंगी एंटीबायोटिक्स, लंबे समय तक अस्पताल में रहना, जटिलताओं का अधिक जोखिम और कभी-कभी सर्जरी भी शामिल है। इससे स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों और व्यक्तियों पर तो महत्वपूर्ण वित्तीय बोझ पड़ता ही है साथ ही साथ यह हमारी अर्थव्यवस्था पर भी एक बोझ बढ़ाता है।

• भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षण: एंटीबायोटिक्स एक सीमित संसाधन हैं, और इन दवाओं के अत्यधिक उपयोग से समय के साथ उनकी प्रभावशीलता कम हो सकती है। एंटीबायोटिक दवाओं का जिम्मेदारी से और केवल आवश्यकता पड़ने पर उपयोग करके, हम भावी पीढ़ियों के लिए उनकी प्रभावकारिता को बनाए रखने में मदद कर सकते हैं।




उक्त सभी कारण फंगल संक्रमण के लिए और भी अधिक यथार्थ हैं। सर्वविदित है कि फंगल इन्फेक्शन का उपचार कितना मुश्किल होता है। वे आसानी से एंटीफंगल दवाओं के लिए प्रतिरोधी बन जाते हैं। इसके अलावा ऐंटिफंगल दवाओं के बहुत दुष्प्रभाव होते हैं और अधिकांश लोग इन दवाओं का कोर्स भी पूरा नहीं कर पाते क्योंकि यह उनके लीवर पर कुप्रभाव डालना शुरू कर देतीं हैं। साथ ही साथ एंटीफंगल दवाएं सबसे महंगी दवाओं में से एक होती हैं। इनमें से कुछ तो प्रति इंजेक्शन एक लाख रुपये तक महंगी हो सकती हैं जिन्हें स्पष्ट रूप से हर कोई वहन नहीं कर सकता है।


होमियोपैथी - हमारे लिए इसीलिए ज़रूरी 

यही कारण है कि आपको होमियोपैथी जैसी कारगर, सस्ती, सुलभ और साइड-इफ़ेक्ट रहित चिकित्सा पद्धति को अपनाना चाहिए। ऊपर सूचीबद्ध चिंताओं को दूर करने के लिए, हल्की बीमारियों के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के बजाय होमियोपैथी का उपयोग करना न सिर्फ प्रासंगिक है बल्कि महत्वपूर्ण भी है। चिकित्सकों और आम जनता के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के उचित उपयोग और उनके अति प्रयोग से जुड़े जोखिमों के बारे में शिक्षित होना भी महत्वपूर्ण है। इसलिए, रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) के वैश्विक खतरे से निपटने के लिए आयुष मंत्रालय के अंतर्गत उपचार की कारगर पद्धतियां जैसे होमियोपैथी और आयुर्वेद को बढ़ावा देना सरकार की जिम्मेदारी एवं प्राथमिकता बन जाती है।