हम सभी के मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि अंकुरित आहार में पोषण के तत्व कैसे पैदा होते हैं? दरअसल सभी बीज सामान्य रूप से निष्क्रिय अवस्था में पड़े रहते हैं। इन बीजों के अंदर संरक्षित जीवन की उत्पत्ति के कारक तत्व अनुकूल परिस्थितियां पाते ही सक्रिय हो जाते हैं। अमृताहार में बीजों तथा दालों के अंदर स्थित निष्क्रिय तत्वों को सक्रिय कर आहार के रूप में प्रयोग किया जाता है।
आधुनिक प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि एक बीज के भीतर एक पूरा जीवन छिपा होता है। इसमें वे सभी तत्व संग्रहित होते हैं जो पौधे का जीवन चलाते हैं। यही तत्व हमारे शरीर के लिए भी आवश्यक होते हैं यही कारण है कि अंकुरित बीजों को लिविंग फूड भी कहा जाता है।
विभिन्न अनाजों व दालों को पानी में भिगो देने पर उनके अंदर स्थित सभी तत्व सक्रिय हो जाते हैं। इससे बीज में अनेक रासायनिक परिवर्तन आते हैं। अंकुरण की अवस्था में बीजों में विटामिन सी, आयरन तथा फास्फोरस की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है। इतना ही नहीं अंकुरण के बाद कुछ ऐसे तत्वों की मात्रा में कमी आती है जो शरीर के लिए हानिकारक होते हैं, इस प्रकार के तत्वों में ओलिगासैकराइड्स प्रमुख है।
अंकुरण के बाद विभिन्न दालों में पाया जाने वाला स्टार्च, ग्लूकोज में तथा फ्राक्टोज, माल्टोज में बदल जाता है। इससे इनका स्वाद तो बढ़ता ही है साथ ही वे सुपाच्य भी हो जाती हैं। इसी प्रकार की प्रक्रिया अनाज में भी होती है। परिवर्तन की यह प्रक्रिया अनाज में तीव्र तथा दालों में कुछ धीमी गति से होती है।
अमृताहार बनाने के लिए चना, मूंग, राजमा, मेथी, सोंठ, लोबिया, सोयाबीन, सूर्यमुखी तथा गेहूं के बीजों को प्रयोग किया जाता है। इनके अतिरिक्त अन्य दालों को भी अंकुरित कर प्रयोग किया जा सकता है। अंकुरित करने के लिए बीजों को अच्छी तरह धोकर जार या किसी अन्य बर्तन में दस−बारह घंटों के लिए भिगो देना चाहिए। बीजों को भिगोने के लिए इतना पानी जरूर डालें कि उसमें बीज पूरी तरह डूब जाएं। अच्छी तरह भीगे हुए बीजों को पानी से दोबारा अच्छी तरह धोकर साफ सूती कपड़े की एक पोटली में टांग दें। इस तरह से भीगे हुए बीजों का अंकुरण लगभग २४ घंटे में हो जाता है। गर्मियों में यह ध्यान रखना जरूरी है कि लटकाई गई पोटली सूखे नहीं इसके लिए थोड़ी−थोड़ी देर में उस पर पानी का छिड़काव करते रहें जिससे पोटली में नमी बनी रहे।
अंकुरित बीजों को कच्चा ही खाना चाहिए क्योंकि पकाने से उनके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इन बीजों का स्वाद कुछ कसैला होता है इसलिए उनमें नमक, टमाटर, खीरा, नींबू आदि डाला जा सकता है, इससे उनका स्वाद बढ़ जाता है।
अंकुरित बीजों के प्रयोग से कमजोरी तथा कई प्रकार के रोग दूर होने के साथ−साथ शरीर को उचित पोषण भी मिलता है। इनसे हमारा इमम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। नशाखोरी तथा मद्यपान की लत छुड़ाने में भी यह अमृताहार सहायक होता है। अंकुरित आहार गर्भकाल में बहुत पोष्टिक और संतुलित आहार होता है। प्रयास कीजिए हर दिन थोड़ी-थोड़ी मात्रा में इसका सेवन करें।
तीन प्रकार के बीजों का प्रयोग मुख्यतः किया जाता है, चयन रोग के आधार पर किया जाता है। मधुमेह के रोगियों के लिए चना व मेथी, हृदय रोगियों के लिए चना तथा मूंग और बढ़ते बच्चों व माताओं के लिए अंगूर, बादाम व खजूर। सामान्य व्यक्ति किसी भी प्रकार के अमृताहार का प्रयोग कर सकता है। नियमित सेवन से रक्त अल्पता, हडि्डयों की बीमारियां, मानसिक तनाव, कब्ज, अनिद्रा, बवासीर, मोटापा तथा पेट के कई रोगों से छुटकारा मिल जाता है।
अंकुरण के लिए ताजा तथा स्वस्थ बीजों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि अंकुरण पुराना, दुर्गन्धयुक्त या बासी न हों ।
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