प्रतिवर्ष 10 अप्रैल को विश्व होमियोपैथी दिवस मनाया जाता है। यह दिवस होमियोपैथी के जनक डॉ. सैम्युअल हैनिमन की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। जर्मन मूल के क्रिस्चियन फ्रेडरिक सैम्युअल हैनिमन का जन्म 1755 में हुआ था। हमें यह जानकर गर्व होना चाहिए कि डॉ. सैम्युअल हैनिमन ही विश्व के एकमात्र ऐसे गैर-धार्मिक और गैर-राजनैतिक व्यक्ति हैं जिनका जन्मदिन पूरे विश्व में एकसाथ मनाया जाता है।

चिकित्सा जगत में दिए गए उनके योगदान के कारण ही उनका जन्मदिन मनाया जाता है तथा इस उपलक्ष्य में होमियोपैथी का प्रचार प्रसार करने तथा बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम तथा जगह-जगह मुफ़्त चिकित्सा शिविरों, संगोष्ठियों आदि का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष उनकी 266वीं जयंती मनाई गई है। तथा इस वर्ष का थीम है "रोडमैप टू इंटीग्रेटिव मेडिसिन"

होमियोपैथी को आगे ले जाने की चुनौतियों और भविष्य की रणनीतियों को समझने का प्रयास किया गया है।

बीते वर्ष की विनाशकारी महामारी ने मार्च 2021 तक पूरे विश्व में 25 लाख लोगों की जान ले ली है तथा वर्तमान में 11.3 करोड़ लोग इससे पीड़ित हैं। इस वर्ष कोरोना वायरस और भी अधिक संक्रामक होकर लौट आया है तथा Covid-19 की इस दूसरी लहर ने बहुत तेज़ी से अपने पैर पसार लिए हैं। राहत की बात यह है कि पिछले वर्ष के मुकाबले हम और भी अधिक सजग एवं तैयार हैं। इस वर्ष की शुरुआत में ही भारत में दो वैक्सीन को आपातकालीन अधिकृती दी गई तथा व्यापक रूप से टीकाकरण का अभियान भी शुरू हो गया। 

उल्लेखनीय है कि होमियोपैथी दुनिया में दूसरी सबसे लोकप्रिय चिकित्सा पद्धति है। केन्द्रीय होमियोपैथी अनुसंधान परिषद (CCRH) के अनुसार, यह दवाओं द्वारा रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है, जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है। होमियोपैथी चिकित्सा का ही एक वैकल्पिक रूप है, जो “समरूपता” दवा सिद्धांत पर आधारित है। अगर देखा जाए तो क्या यह वैक्सीन के सिद्धांत से मिलता जुलता हुआ नहीं है? 

आज भारत में अबतक के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की मुहिम चल रही है।