रूहमैटॉइड आर्थराइटिस (RA) जिसे हम आम भाषा में गठिया भी कहते हैं, इसके 90% रोगी उपचार के लिए पहले हड्डीरोग विशेषज्ञ के पास ही जाते हैं। कुछ थोड़े-बहुत जानकार लोग रूहमैटोलॉजिस्ट के पास भी जाते हैं और इस तरह कई डॉक्टरों के पास भटकते-भटकते जबतक उन्हें यह ज्ञात होता है कि यह हड्डियों की बीमारी न होकर मूल रूप से एक “ऑटो-इमम्यून डिसीज़” (Auto-immune Disease) है तबतक बहुत देर हो चुकी होती है।

इस दौरान बहुत कम खुशनसीब लोग ऐसे होते हैं जो सही समय पर किसी होमियोपैथ के पास उपचार के लिए आते हैं। इस रोग के विषय में सटीक एवं संपूर्ण जानकारी न होने के कारण 60% से भी अधिक रोगी जबतक किसी अच्छे होमियोपैथ से संपर्क करते हैं तबतक या तो वे चलने-फिरने में पूरी तरह से लाचार हो चुके होते हैं अथवा उनके जोड़ों में बहुत अधिक विकृति आ चुकी होती है। इस रोग में जोड़ों की विकृति जितनी अधिक हो जाती है उसका उपचार उतना ही जटिल एवं दीर्घकालीन हो जाता है।


क्या होते हैं ऑटो-इम्मयून डिसीज़ (Auto-immune Disease)?

यहाँ सबसे पहले तो यह समझना होगा कि रूहमैटॉयड आर्थराइटिस एक “ऑटो-इम्मयून डिसीज़” है। “ऑटो” का अर्थ होता है स्वयं अथवा स्वचालित तथा “इम्मयून” का अर्थ होता है हमारे शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता। इस प्रकार ऑटो-इम्मयून डिसीज़ रोगों की वह श्रेणी है जिनमें शरीर का इम्मयून सिस्टम किसी अव्यवस्था के कारण, स्वयं अपने ही शरीर के अंगों को दुश्मन जानकर उनपर आक्रमण करने लगता है। रूहमैटॉयड आर्थराइटिस इसी श्रेणी का वह रोग है जिसमें हमारा इम्मयून सिस्टम हमारे ही जोड़ों को बाहरी प्रोटीन समझकर उनके विरूद्ध एंटीबॉडी का निर्माण करके उन्हें क्षति पहुँचाना आरंभ कर देता है। धीरे-धीरे जोड़ों की परतों में दर्द और सूजन रहने लगती है और हड्डियाँ घिस जातीं हैं। अंत में जोड़ों में पूर्ण रूप से विकृति आ जाती है। यही कारण है कि मानवजाति में व्याप्त समस्त व्याधियों में से ऑटो-इम्मयून डिसीज़ को सबसे घातक माना गया है क्योंकि इनमें हमारा ही इम्मयून सिस्टम स्वयं अपने ही शरीर के अंगों को नष्ट करने में लग जाता है।


क्या होता है रूहमैटॉइड आर्थराइटिस (RA)? 

रूहमैटॉइड आर्थराइटिस (RA) एक क्रोनिक, ऑटो-इम्मयून, इंफ्लेमेट्री डिसीज़ है जिसमें दोनों तरफ के जोड़ों में सूजन के साथ असहनीय दर्द होता है। समय के साथ, हड्डियों को आपस में जोड़ने वाले लिगामेंट्स कमजोर हो जाते हैं, और हड्डी अपनी जगह से हट जाती है। ऐसे में जोड़ों में विकृति आ जाती है जिसके कारण चलने-फिरने में लाचारी होती है। इसी तरह की तकलीफ़ ऑस्टियो-आर्थराइटिस (Osteo-arthritis) में भी देखी जाती है किंतु ऑस्टियो-आर्थराइटिस बड़ी उम्र में देखने को मिलता है, साथ ही यह एक ऑटो-इम्मयून डिसीज़ नहीं होता है तथा इसके लक्षण RA से कुछ भिन्न होते हैं 

रूहमैटॉइड आर्थराइटिस (RA) 35 से 50 वर्ष के बीच की महिलाओं में सबसे ज़्यादा देखी जाती है। आमतौर पर यह महिलाओं में पुरुषों के मुक़ाबले अधिक होता है। बच्चों में होने पर इसे जुवेनाइल आर्थराइटिस (Juvenile arthritis) कहा जाता है। भारत सरकार की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में वर्तमान में लगभग 70 लाख लोग रूहमैटॉइड आर्थराइटिस (RA) से पीड़ित हैं। इस रोग की गंभीरता और व्यापकता को देखते हुए, लोगों को इसके प्रति जागरुक करने के उद्देश्य से सन 1996 से प्रत्येक वर्ष 12 अक्टूबर को विश्व आर्थराइटिस दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष का थीम है "मूव टू इंप्रूव” (Move to improve) यानी बीमारी को ठीक करने के लिए चलें। यदि आप भी अर्थराइटिस के विषय में आवश्यक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको इस लेख को जरूर पढ़ना चाहिए।

इस बीमारी की ख़ास बात यह होती है कि आमतौर पर यह पहले हाथ और पैर में छोटे जोड़ों को प्रभावित करता है। बाद में यह कलाई, कोहनी, टखनों, घुटनों, कूल्हों और कंधों तक फैल सकता है। यह शरीर के दोनों तरफ के जोड़ों को एक साथ प्रभावित करता है जैसे दोनों घुटने, दोनों बाजू या दोनों कलाईयाँ। साथ ही यह शरीर के दूसरे हिस्सों जैसे आंखें, हृदय, फेफड़े और रक्त वाहिकाओं को भी प्रभावित कर सकता है।


लक्षण

RA जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करता है। सुबह का दर्द और जकड़न दिन को समय पर शुरू करना मुश्किल बना देता है। जब दर्द तेज हो, तो साधारण काम जैसे बोतल खोलना, सब्जियां काटना, बर्तन धोना, यहाँ तक की टूथब्रश पर टूथपेस्ट लगाना तक मुश्किल हो जाता है।

निदान

रूहमैटॉइड आर्थराइटिस का निदान करने के लिए लक्षणों के साथ-साथ पिछली मेडिकल हिस्टरी या अन्य जानकारियाँ पूछी जाती हैं। साथ ही प्रभावित जोड़ों का संपूर्ण निरीक्षण किया जाता है जिसमें छूने पर दर्द का एहसास, सूजन और माँसपेशियों की मज़बूती आदि देखी जाती हैं। इसके उपरांत ऑस्टियो-आर्थराइटिस से भेद करने के लिए कई प्रकार के टेस्ट कराए जाते हैं जैसे खून की जाँच जिनमें ई.एस.आर. (ESR), रूहमैटॉइड फैक्टर टेस्ट (RA-factor test), सी-रिएक्टिव प्रोटीन टेस्ट (C-reactive protein), एंटी-सिट्र्लीनेटेड प्रोटीन एंटीबॉडी टेस्ट (anti-cyclic citrullinated peptide antibodies test), आदि शामिल हैं। साथ ही अन्य जाँच जैसे अल्ट्रा-साउंड (USG), एक्स-रे (x-ray), एम.आर.आई. (MRI) आदि से जोड़ों की हुई क्षति का अनुमान लगाया जाता है।


पारंपरिक पद्धति क्यों है असफल?

पारंपरिक पद्धति में सामान्य तौर पर रूहमैटॉइड आर्थराइटिस के उपचार में Nonsteroidal anti-inflammatory drugs (NSAIDs), स्टेराइड्स और disease-modifying anti-rheumatic drugs (DMARDs) का उपयोग किया जाता है। DMARDs में मुख्यतः मिथोट्रिक्सेट (Methotrexate) नामक दवा दी जाती है। देखा गया है कि 30 से 40 फीसद रोगियों में यह दवा काम ही नहीं करती है। तब ऐसे रोगियों पर स्टेराइड्स का भी भरपूर उपयोग किया जाता है। शुरुआत में तो स्टेराइड्स बहुत कारगर प्रतीत होते हैं क्योंकि स्टेराइड्स को “इम्मयूनो-सप्रेसएंट्स” (immunosuppressants) यानी हमारी इम्यूनिटी को दबाने वाला माना जाता है। किंतु लंबे समय तक इनका उपयोग सर्वथा हानिकारक ही सिद्ध हुआ है। ऐसे रोगियों को हृदय, लीवर, किडनी, फेफड़े, रक्त अथवा न्यूरोलॉजिकल संबंधी परेशानियाँ हो जाती हैं। इसके अलावा यदि एक बार स्टेराइड्स शुरू हो जायें तो शरीर को इनकी आदत पड़ जाती है और तब इनसे चाहकर भी छुटकारा नहीं पाया जा सकता है। इस प्रकार वे रोगी धीरे-धीरे रोगों का पिटारा बन जाते हैं और उन की स्थिति दिन-प्रतिदिन बद-से-बदतर ही होती जाती है।


होमियोपैथिक उपचार

रूहमैटॉयड आर्थराइटिस या किसी भी अन्य ऑटो-इम्मयून डिसीज़ का उपचार होमियोपैथी के माध्यम से संभव है जिसके द्वारा रोग की शुरुआत में इसे पूर्ण रूप से ठीक किया जा सकता है वहीं पुराने एवं जटिल रोग में रोगी को काफी हद तक राहत पहुँचाई जा सकती है तथा गंभीर कंप्लिकेशंस को टाला जा सकता है। ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि होमियोपैथिक दवाएं "इम्मयूनो-सप्रेसएंट्स" (immunosuppressants) न होकर इम्मयूनो-स्टिम्युलेंट्स (immunostimulants) होती हैं जो कि हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को स्वस्थ करती हैं तथा उनके साथ मिलकर कार्य करतीं हैं ऐसे में ज़रूरी है कि आप अपने होमियोपैथिक चिकित्सक की सलाह पर पूर्ण विश्वास के साथ दवा का सेवन करें क्योंकि हर रोगी की स्थिति अलग होती है। ऐसे में उसकी आयु, उसका चिकित्सा इतिहास, प्रमुख लक्षण आदि देखकर उसके आधार पर दवाई दी जाती है। साथ ही इस तरह की गंभीर बीमारी में ओनलाइन परामर्श न लें।