तो आपने कोरोना को परास्त कर दिया है! लेकिन क्या अभी भी आपको हर समय अत्यधिक थकान और सुस्ती बनी रहती है? तो फिर जानिए कि जिसे आप सिर्फ़ आलस्य या मामूली थकान समझ रहे हैं कहीं वह पोस्ट-वायरल फटीग सिंड्रोम या क्रोनिक फटीग सिंड्रोम तो नहीं।

पोस्ट-वाइरल फटीग सिंड्रोम को हमेशा से ही बहुत अधिक महत्व नहीं दिया गया है। ऐसा इसीलिए है क्योंकि या तो लोग इसे बीमारी नहीं समझते अथवा इसका कोई अन्य प्रत्यक्ष कारण या शारीरिक विकृति वास्तव में अबतक ज्ञात ही नहीं है। आज के परिप्रेक्ष्य में कोविड-19 की महामारी न सिर्फ़ वर्तमान में हमारे समाज के लिए एक ख़तरा है बल्कि आने वाले समय में भी हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी एक बहुत बड़ा बोझ है। पोस्ट-वाइरल फटीग सिंड्रोम कोरोनोवायरस संक्रमण के इन्हीं दीर्घकालिक परिणामों में से एक है।

क्या है क्रोनिक फटीग सिंड्रोम (सी.एफ.एस.)?

किसी वायरस के संक्रमण के बाद महसूस होने वाली अत्यधिक थकान एवं कमज़ोरी के साथ अन्य लक्षणों को सम्मिलित रूप से पोस्ट-वाइरल फटीग सिंड्रोम या क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम या मायेल्जिक एनसिफेलोमाएलाएटिस (एम.ई.) या न्यूरस्थेनिया भी कहा जाता है। कहीं-कहीं इसे सिस्टेमिक एक्ज़रशन इनटॉलरेन्स डिसीज़ के नाम से भी जाना जाता है। इसकी थकान की विशेषता यह होती है कि यह आराम करने पर भी नहीं जाती है। दैनिक शारीरिक और मानसिक गतिविधियों से यह और भी ज़्यादा बढ़ जाती है तथा रोगी हर समय अस्वस्थ और थका हुआ महसूस करता है।

किन कारणों से होता है क्रोनिक फटीग सिंड्रोम?

हालांकि सी.एफ.एस. के किसी भी कारण की पहचान नहीं की गई है, किंतु अधिकांश मामलों में किसी वायरल संक्रमण के बाद ही इसे देखा गया है। जैसे इनफ़्लुएंज़ा, ग्रंथियों के बुखार (एप्स्टीन बार वाइरस), वायरल मेनिंजाइटिस, वायरल हेपेटाइटिस, और अब नॉवेल कोरोना वायरस, आदि। इस बीमारी के बारे में अबतक बहुत कम ज्ञात है, किंतु इतना स्पष्ट है कि इसके ज़्यादातर मामले श्वसन और पाचन तंत्र के वायरल संक्रमण से संबंधित होते हैं। कभी-कभी आघात जैसे दुर्घटना या ऑपरेशन, टीकाकरण और ऑर्गनोफॉस्फेट कीटनाशक की विषाक्तता के कारण भी यह उत्पन्न हो सकता है। आमतौर पर यह 20 से 40 वर्ष के मध्य की महिलाओं में अधिक देखा जाता है।

प्रकार:

सी.एफ.एस. की गंभीरता को स्थितियों से परिभाषित किया जाता है- हल्के, मध्यम और गंभीर।

  • हल्के से मध्यम सी.एफ.एस. के मामले में लोग चलते-फिरते रहते हैं और काम करने में सक्षम होते हैं, हालांकि उन्हें आराम करने और बहुत ज़्यादा सोने की जरूरत महसूस होती है।
  • गंभीर मामलों में रोगी कोई भी गतिविधि करने में असमर्थ हो सकते हैं। वे अपना अधिकांश समय बिस्तर में ही बिताते हैं और गंभीर मानसिक समस्याएं जैसे अवसाद, चिंता, अनियंत्रित क्रोध, आदि से भी जूझ सकते हैं।

लक्षण:

इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है शीघ्र थकान या निरंतर थकान की भावना बनी रहना। इसके साथ साथ अन्य लक्षण जैसे: 

  • जोड़ों या में मांसपेशियों में दर्द, 
  • गले में खराश, 
  • लंबे समय तक दस्त, 
  • सिरदर्द, 
  • चक्कर आना, 
  • खराब संतुलन, 
  • भूख न लगना,
  • नींद में गड़बड़ी 
  • साथ ही मानसिक लक्षण जैसे कमज़ोर याददाश्त, एकाग्रता में कमी, अल्पकालिक स्मृति, अवसाद, चिंता, अनियंत्रित क्रोध, आदि भी देखे गये हैं।

इन रोगियों को आमतौर पर लंबी नींद की आवश्यकता होती है।

निदान:

इसका निदान आसान नहीं है क्योंकि इसकी पुष्टि करने के लिए कोई एक निश्चित परीक्षण मौजूद नहीं है। इसका निदान एक्सक्लूषन क्राइटीरिया पर किया जाता है यानी अन्य बीमारियाँ जिनमें इसी तरह के लक्षण पाए जाते हैं पहले उनकी जाँच की जाती है। उन अन्य बीमारियाँ की अनुपस्थिति में ही इसके होने की संभावना पर ज़ोर दिया जाता है। साथ ही वायरल संक्रमण के संपर्क में आने के बाद, एक वयस्क व्यक्ति में कम से कम चार महीने तथा बच्चों में कम से कम तीन महीने तक यदि इस तरह की कमज़ोरी एवं लक्षण पाए जाते हैं तब इस पर विचार किया जाता है।

अन्य बीमारियाँ जिनमें सी.एफ.एस. के समान लक्षण पाए जा सकते हैं वह हैं: 

  • मधुमेह, 
  • हाइपोथायरायडिज्म, 
  • ग्रंथियों का बुखार, 
  • हेपेटाइटिस बी या सी, 
  • सीलिएक रोग, 
  • इनफ्लमेटरी बोवेल डिसीज़, 
  • मल्टीपल स्केलेरोसिस, 
  • गठिया, 
  • किसी भी प्रकार के कैंसर, आदि।

होमियोपैथिक उपचार: 

होमियोपैथिक में बहुत सारी दवाइयाँ मौजूद हैं जिनका उपयोग पोस्ट-वाइरल फटीग सिंड्रोम के उपचार के लिए किया जा सकता है। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण उपयोग की जाने वाली होमियोपैथिक औषधियाँ हैं एसिड-फॉस, एलुमिना, कार्बो-वेज, चीन, जेल्सेमियम, काली-फॉस, लाइको, मर्क-सोल, म्यूरिएटिक-एसिड, पिक्रिक-एसिड, स्कुटेलरिया, वेरेट्रम-अल्ब, जिंक, आदि। इसके अलावा, बाख फ्लावर औषधियाँ जैसे सेंटौरी, हॉर्नबीम, ऑलिव आदि भी साथ में उपयोग की जा सकतीं हैं

इनमें से सही दवा का चयन करना निश्चित रूप से एक जटिल कार्य है जो पूरी तरह से रोगी की प्रकृति तथा उपस्थित लक्षणों की समग्रता पर निर्भर करता है। निश्चित ही यह कार्य केवल क्षेत्र के विशेषज्ञ द्वारा किया जाना चाहिए। अतः अपने होमियोपैथिक चिकित्सक की सलाह लें। ऑनलाइन परामर्श के लिए हमारे विशेषज्ञ चिकित्सकों से संपर्क करें।